कुछ तेरे हैं कुछ मेरे हैं
कुछ उन लोगों ने भी बिखेरे हैं
कभी बात करते तो कभी चुप रहते हैं
कभी मेरी तो कभी तेरी कथा कहते हैं
किसी के हथियार हैं तो किसी के यार हैं
किसी के लिए अमृत तो किसी के लिए हलाहल अपार हैं
वैसे तो कागज़ पे लिखते हैं
लेकिन ये हमारे विचारों में भी बस्ते हैं
कभी इन्द्रधनुष कभी श्याम-श्वेत से प्रतीत होते हैं
थोड़ा प्रेम थोड़ी नफरत भी लेके ये चलते हैं
सत्य और असत्य भी इनसे ही बनते हैं
हर अर्थ में एक और अर्थ भी यही फूंकते हैं
हम तो केवल माध्यम हैं, लिखते हैं
ये अमर हैं हमेशा जीवंत रहते हैं
इनको, कोई मोती कोई फूल तो कोई सपने समझते हैं
आशा और निराशा की काया भी तो यही रचते हैं
इनसे खेलना आसान नहीं, ये वापस भी आते हैं
हर गुमराह को एक बार उसका चेहरा भी दिखलाते हैं
ना ये तेरे हैं ना ये मेरे हैं, ये केवल शब्द हैं शब्द
जो ना जाने किस किस ने बिखेरे हैं
3 comments:
atiii sundar :)
shukriya shukriya :)
Kya baat,, bahut khoobsurat
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