मैं क्यों करूं घृणा
ये तो तेरा काम है
जो मन में है तेरे
उसका ही तो इर्षा नाम है
अग्नि को तुम कहाँ पूछते हो
बस खुद में जलती
इस अग्नि
में ही जलते हो
मैं का आलेख
थकाता नहीं तुम्हें
किसीकी सफलता का विचार
भाता नहीं तुम्हें
खुद तो शीशे के घर
में रहते हो
और दूसरों के चीर हरण
की प्रतीक्षा करते हो
एक बुलबुला जो
फुलाया है तुमने
केवल हरा रंग है
समाया तुममे
एक न एक दिन
ये घर ही टूटेगा
एक न एक दिन
ये बुलबुला भी फूटेगा
फिर पूछोगे
क्या पाया तुमने
मैं बोलूँगा
वही जो कुछ उगाया तुमने
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Image Courtesy : Laurel Havir ( http://www.storyculture.com/blog/lalla-porter---oil-paintings/ ) |
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