कुछ खामोशियाँ हैं दरमियां
कुछ बेरुखी भी हैं यहाँ
एक बेचैनी है जो छायी
न जाने किसने ये दूरियां बढ़ाईं
टूटा टूटा सा हर वो ख्वाब है
रूठा रूठा सा ये महताब है
मू फेरे बैठे हैं, शायद किसी अंधेरे में
अपना अक्स खो आये हैं
कुछ उलझने हैं जो बीच हैं
पर सुलझाने की कोशिशें नदारद हैं
ये अश्क तो सिहाई हैं, इनको बहने दो
क्या पता जो कह न पाए वो लिख ही लो
उसी साथ का इंतज़ार है, पुरानी
नज़दीकियों के लिए आज भी कोई बेकरार है
इलज़ाम देना मुनासिफ न होगा
ख़ामोशी से भी कुछ हासिल न होगा
अब ये मोड़ ही कुछ दिखलायेगा
कहाँ चलना था कहाँ रुकना सिखलाएगा
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Image Courtesy : TOI (http://adayinlife.timesofindia.com/photos/uljhane/30016) |
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