कल गर्मी की पहली बरखा हुई थी
कितने दिनों बाद वो मिट्टी फिर से नम हुई थी
कई वृक्ष जो सूख चले थे
कई खेत थे जो बंजर हो चले थे
एक आशा थी जो डूब रही थी
एक परिभाषा थी जो कुछ सोच रही थी
कब वो मेघ आएगा , जो कुछ
जर्जर है उसको सींच के जाएगा
उस झोपड़ी की दीवार चटक के फट गयी थी
कितने जीवन थे जो बारिश की एक बूँद को तरस रहे थे
बाहर खड़ा वो प्रहरी कुत्ता भी समझ चुका था
प्यासे पक्षिओं की तरह वो भी शांत हो चला था
जीवन म्रत्यु में सामने लगा था, एक मेघ
ही था जो ये ढलाव थाम सकता था
आशा ने फिर वो सांस ली
जीवन को जीवन की फिरसे आस दी
देर ही सही फिर वो बादल आया
आशा, खुशियाँ और जीवन की वो वर्षा लाया
आज सब हरा तो नहीं पर सूखा भी नहीं
कल फिर मेहनत खेत जोतेगी और हरियाली लाएगी
2 comments:
hum sabhi ko kisi na kisi megh ka intezar hota hai na jeevan mein :)
hmmm..sahi kaha, mujhko bhi hai!
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