वो जो चाँद था खो गया है कहीं
इन् बादलों ने साज़िश करके
छुपाया लिया है शायद
बचीं हैं तो बस
वो बादलों के पीछे से आती किरणें
जो चाँद के होने का झूठा एहसास देतीं हैं
वो झलक तो आज भी याद है
दुनिया कहती है दूर
पर कुछ यादें आज भी मेरे पास हैं
आँखें आज भी ख़ामोश रहती हैं
ये तो मन की ज़ुबा है
जो रोज़ एक ही कहानी कहती है
फ़ासले तय करने से गुरेज़ कहाँ था
लेकिन बिना मंज़िल का सफ़र होगा
ऐसा भी एहसास कहाँ था
हर रात को अपना बनाने का दिल करता है
अतीत के कुछ मायने हैं
जिनको बदलने का जी करता है
सपने अब नहीं बेहलाते मुझे
उस चाँद की तरह
ये नींद भी अब पास नहीं मेरे
सच क्या है झूट क्या था
ये कहाँ मायने रखता है
मेरे चाँद का दीदार रोज़ होता
बस यही ख़याल आया करता है
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