ये तुम हो ये मैं हूँ
ये हम में बसा हमारा अहम् है
इसको तुम भी जानते हो, मैं भी
इसको तुम भी मानते हो, मैं भी
कभी दर्पण देखो तो समझ पड़े
किसकी मानते हो ये पता चले
बस इसकी हाँ में हाँ मिलाना सीखा है
कभी इसकी नियति को भी देखा है
जो तुम बोलते हो उसको झूट कहते हैं
तुम्हारे शब्द केवल 'मैं' का ही बोझ ढोते हैं
इसने केवल आँखें तरेरना सिखाया तुम्हें
क्या कभी खुद पर तरस नहीं आया तुम्हें
बस अपना कन्धा ही प्यारा है तुम्हें
इसीलिए भीड़ में भी अकेले रहते हो
हो सके तो दफ़न करदो
खुद में बसे खुद को ख़तम कर दो
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Image Courtesy : Chris Lang (http://goo.gl/W4kJ8) |
3 comments:
हो सके तो दफ़न करदो
खुद में बसे खुद को ख़तम कर दो
Bahut Khoob....
thank you very much ma'am :)
subhanallah!
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