एक पड़ाव था जो यूँ ही निकल गया
एक ख़याल था जो यूँ ही पिघल गया
कोशिश बहुत की पकड़ने की
एक धुएं सा ग़ुबार था जो पल में घुल गया
केहना था कुछ, कुछ और कह गया
मन में एक विचार था जो मन में रह गया
कभी सर पकड़ता तो कभी पूँछ
मानो हथेली में एक अंगार था जो फुर्र से उड़ गया
मेरा तो वक़्त पे भी उधार था
इसलिए, फिर से वक़्त मिल गया
कागज़ों पे कुछ उभार था
जो यूँ ही दिख गया
इन उभारों में एक "काश" था
जो फिर से गुम गया
"पता" सोचा कलम से पूछ लूं
"जाने दो" बोलके मन फिर चुप हो गया
फ़िर एक पड़ाव था जो यूँ ही निकल गया
3 comments:
Lovely lines..
धन्यवाद
Wow
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