कोई मौका तो कोई कंधा ढूँढता है
अपनी सिलवटें छुपा सकूं, मैं ऐसा भेस ढूँढता हूँ
किससे तो बहुत हैं मेरे पास भी
बस अपने दर्द को ठहाके लगाके बेचता हूँ
क्या फ़र्क पड़ता है तेरे सुनने से
इस बेरुख़ी की इन्तेहः को देखता हूँ
कुछ दर्द हैं, इसीलिये उम्मीद भी है
बस इसी उम्मीद का भोझ लिए घूमता हूँ
बात तो हुई है कई दफ़ा
लेकिन हर बार शीशे टूटते ही देखता हूँ
'काश' की दुनिया 'कल' दिखाती है
बस इसी कल में ख़ुद को ढूँढता हूँ
शिक़ायत इन हवाओं से होती तो बोलता नहीं
बहुत से तिनके बिखरें हैं जिनको अकेले ही बटोरता हूँ
कोई मौका तो कोई कंधा ढूँढता है
अपनी सिलवटें छुपा सकूं, मैं ऐसा भेस ढूँढता हूँ
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Image Courtesy : Mika Suutari |
2 comments:
Splendid!! hope you are doing great Paras!
Hey hey hey hiii Vinaya long time !!
I'm doing good, how are u?
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