ये कागज़ और कलम अब किसी काम के नहीं
मुझे अपने शब्द अब गिनवाने नहीं
छुप के रेहना है तो रेह लूंगा
मगर इस मन पे ज़ोर सही बात नहीं
ख़ैर आज की क्या बात करूँ
मन को तो बस कल ही दिखता है ।
बहुत कुछ साफ़ दिखता है इन आँखों को
बहुत कुछ याद आता है इस मन को।
वो स्कूल की यूनिफार्म
वो साइकिल पे घूमना
टूशन की मस्ती
कॉलेज का नया पन
सबकुछ पाने का मन
तेरा दिलाया वो कोट
पर्स में रकखे दस के वो नोट
पर्स में रकखे दस के वो नोट
वो बिखरे कपड़े
हम चारों का साथ
क्या कुछ नहीं था हमारे पास
घूमना-फिरना
टीवी देखने के लिए लड़ना
ट्रेन के सफ़र
घर के मंदिर में आस्था का असर
थोड़ी आजकी तो थोड़ी भविष्य की फिकर
और न जाने क्या क्या...
थोड़ी आजकी तो थोड़ी भविष्य की फिकर
और न जाने क्या क्या...
सबकुछ लिखना तो सूरज को दिये दिखाने के समान होगा
लगता है जो मन में है उसे वहीँ रहने दूँ
जो धूल जमा है इन तस्वीरों पे उसे वहीँ रहने दूँ
जो धूल जमा है इन तस्वीरों पे उसे वहीँ रहने दूँ
फिर लगता है कम से कम मेरा अंश तो समझे इन सबको
मुझसे पूछे क्या हुआ था कैसे हुआ था
क्यों मैं इतना हिसाब करता हूँ
क्यों में रह रह के "कल" की बात करता हूँ
क्यों मैं इतना हिसाब करता हूँ
क्यों में रह रह के "कल" की बात करता हूँ
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Photo Courtesy : Kuch Ansuni Baatein |
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