कभी कभी इन शब्दों का भी हिसाब कर लेता हूँ
कभी कभी नियति पे भी व्यंग कस लेता हूँ
सोचता हूँ क्या ये मुझपे ही इतनी मेहेरबां है
या अन्य भी इससे इतने ही हैरां हैं
हर पल दूजे से अनजाना सा लगता है
मेरा वो अपना भी अचानक बेगाना सा लगता है
सपने खोने लगते हैं ऐसे
सुखी पत्तों को हवा ले जाती हो जैसे
लेकिन शब्दों से भी कहाँ मन भरता है
समय तो अपनी ही कहानी रचता है
कितना भी झूझ लो क्या फर्क पड़ता है
आखिर वही होता है जो नियति ने सोचा होता है
![]() |
Image Courtesy : http://bit.ly/YegwYE |
2 comments:
Read your poems after a long time....They are so profound n deep.....
Just a reflection of my life :) thanks for appreciating!
Post a Comment